आज मोला एक ठन कविता लिखे के मन करत हे। फेर काकर उपर लिखअव ,कइसे लिखअव बड़ असमंजस में हव जी…
मोर मन ह असमंजस में हे, बड़ छटपठात हे ।तभे चांटी मन के नाहावन ल देख परेव अउ कविता ह मन ले बाहिर आइस।
चांटी मन माटी डोहारत हे भाई…
जीव ले जांगर उठावट हे भाई…
महिनत करे ल सिखावत हे भाई…
हमन छोटे से परानी हरन,
तभो ले हमन थिरावन नहीं
आज के काम ल,
काली बर हमन घुचावन नहीं।
महिनत करना हमर करम हे,
फल देवाइया ऊपर ले देखत हे।
ये दुनिया मे आये हस त ,
थोड़किन नाम कमावव जी भाई…
डबरा के पानी ह बस्साथे,
बोहावत पानी ह फरिहाथे,
पानी के संग म बोहावव जी भाई…
अकेला परानी ह थक जाथे,
जुर-मिल बोझा उठावव जी भाई…
एक ठन काड़ी ह टूट जाथे,
बोझा टोरत ले पछिना आथे,
बोझा कस तुमन गठियावव जी भाई…
जात-पात ल छोड़ के भईया,
भेद-भाव ल तिरियाके,
संघरा चलेबर सिखावत हे भाई…
चांटी मन माटी डोहारत हे भाई…
महिनत करे बील सिखावत हे भाई…
प्रेषक
नोख सिंह चंद्राकर “नुकीला”
सुघ्घर कविता बर बधाई
कुबेर